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जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति या बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

न्यूज़ आई : बोलने की आजादी को लेकर संविधान पीठ ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/ विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. संविधान के अनुच्छेद 19 में पहले से ही व्यापक प्रावधान है. आपराधिक मामलों में सरकार या उसके मामलों से संबंधित मंत्री द्वारा दिया गया बयान सरकार का बयान नहीं माना जा सकता. किसी नागरिक के मौलिक अधिकार की सकारात्मक रूप से रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है. भले ही एक गैर- राज्य एक्टर द्वारा उल्लंघन किया गया हो. जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना का संविधान पीठ की ओर से फैसला सुना गया है. जस्टिस रामासुब्रमियम ने बहुमत के इस फैसले को सुनाया.  हालांकि बेंच में शामिल जस्टिस बी वी नागरत्ना ने अपना अलग फैसला सुनाया. जस्टिस नागरत्ना ने साफ किया कि जनप्रतिनिधियों पर आर्टिकल 19(2) में दिये गए वाजिब प्रतिबंध के अलावा अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है. मंत्री का बयान सरकार का बयान माना जाए या नहीं- इस पर उनका विचार अलग था. उनका कहना है कि मंत्री निजी और आधिकारिक दोनों हैसियत से बयान दे सकते है. अगर मंत्री निजी हैसियत से बयान दे रहा है तो ये उनका व्यक्तिगत बयान माना जायेगा.  लेकिन अगर वो सरकार के काम से जुड़ा बयान दे रहा है तो उसका बयान सरकार का सामूहिक बयान माना जा सकता है.