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न्यूज पोर्टल पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने डीजी सूचना से की मुलाकात

देहरादून, न्यूज़ आई। न्यूज पोर्टल पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने महानिदेशक सूचना रणवीर सिंह चौहान से मुलाकात कर न्यूज पोर्टल टेंडर प्रक्रिया के तहत समूह क, ख और ग में जारी की गई विज्ञापन दरों पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्हें इस संबंध में एक ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल का कहना था कि जो विज्ञापन दरें जारी की गई हैं वह अत्यंत न्यूून हैं। वहीं, डीजी सूचना रणवीर सिंह चौहान ने कहा कि मैं कभी यह नहीं चाहूंगा कि मैं डीजी सूचना रहते हुए इतिहास बन जाऊं। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि विभाग इस प्रकरण की समीक्षा कर इन सारी जानकारियों पर बिंदुवार काम करेगा व जल्दी ही मुख्यमंत्री से मुलाकात कर इसका हल निकाला जाएगा।
इस दौरान उत्तराखंड वेब मीडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज इष्टवाल ने कहा कि चुनावी वर्ष होने के कारण व कोरोना संक्रमण के कारण सभी मीडिया संगठन यही सोच रहे थे कि इस बार सूचना विभाग हमारी रोजी रोटी की दिशा में कुछ बेहतर करेगा, लेकिन जो विज्ञापन दरें सामने आई हैं उससे स्पष्ट हो गया है कि कुछ न्यूज पोर्टल्स ने जानबूझकर ऐसे रेट डाले हैं ताकि सभी पत्रकार भड़क उठें व सरकार के विरूद्ध हल्ला बोल शुरू कर दें। यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत किया गया कार्य है। वरिष्ठ पत्रकार अविकल थपलियाल ने कहा कि हम इस रेट पर भी कार्य करने को तैयार हैं लेकिन क्या हम अपनी अन्तर्रात्मा से सरकार को कार्यों पर कलम चला पाएंगे। उन्होंने कहा कि इतनी कम दर एक साजिश के तहत किया गया कार्य हो सकता है। क्या विभाग के पास अगर यही दर लाखों में आई होती तब क्या विभाग हमें प्रति विज्ञापन पांच या तीन लाख दे पाता? ऐसे में महानिदेशक अपने अधिकारों का प्रयोग कर इस पर सामजंस्य बैठाते। हम उम्मीद करते हैं कि आप जरूर पत्रकार हित में कोई प्रभावी कदम उठाएंगे। पंकज पंवार ने कहा कि यह खबर तो तभी से पत्रकारों के बीच कुछ पत्रकार मित्र बड़ी बेबाकी से रख रहे थे कि इस बार जो विज्ञापन दरें आएंगी वह सबको चौंका देंगी। तब हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी हमें इस तरह चौंकाया जाएगा। इस से यह साफ जाहिर होता है कि ये विज्ञापन दरें वर्तमान सरकार को अस्थिर करने के लिए एक बिशेष योजना के तहत किया जा रहा कार्य है। इस दौरान राकेश बिजल्वाण, शैलेश नौटियाल, अजित काम्बोज आदि उपस्थित रहे। महानिदेशक सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग रणवीर सिंह चौहान ने सभी बिंदुओं का संज्ञान लेते हुए कहा है कि मुझे कुछ समय दें। बहुत जल्दी ही आपको इस सब पर साकारात्मक परिणाम दिखने को मिलेंगे। वे कभी नहीं चाहेंगे कि वे सूचना विभाग में सबसे कम विज्ञापन रेट देने वाले महानिदेशक के रूप में गिने जाएं। न्यूज पोर्टल्स पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल द्वारा डीजी सूचना को 10 सूत्रीय मांग पत्र सौंपा गया। जिसमें कहा गया है कि कोरोना काल में न्यूज पोर्टल पत्रकारों के आर्थिक संकट को देखते हुए इस पूरे वर्ष हर माह सम्मानजनक राशि (वर्ग क के लिए 50 हजार, वर्ग ख के लिए 35 हजार और वर्ग ग के लिए 20 हजार के विज्ञापन) जारी किए जायें। ताकि न्यूज पोटल्स की पूरी टीम पूरे मनोयोग व ईमानदारी से सरकार के विकास कार्यों से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता से लिखे व सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से उनका प्रचार-प्रसार कर सके। समूह क, ख, ग की विगत बर्ष निर्धारित दरों से 20 प्रतिशत अधिक निर्धारित करने के लिए अपने सर्वाधिकार का प्रयोग करें। समूह क और ख वर्ग के न्यूज पोर्टल्स की विज्ञापन दरों के रेट एक जैसे हैं। यह निर्धारित ई-टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, अतः अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए इसमें सुधार करने की कृपा करें। समूह ग के न्यूज पोर्टल्स के रेट भी पिछले साल की तरह ही हैं। यह निर्धारित ई-टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, अतः अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए इसमें सुधार करने की कृपा करें। जिस भी न्यूज पोर्टल संस्थान द्वारा सबसे न्यूनतम दर डाली है, उन्हें चिन्हित कर अपना सर्वाधिकार का प्रयोग कर उन्हें मात्र उस राशि का विज्ञापन जारी हो, न कि उसे अन्य पत्रकारों की भांति अन्य लाभ श्रेणियों में रखा जाय। इस बांत की भी जांच कराई जाये कि क्या स्क्रूटनी करते समय राज्य से बाहर के न्यूज पोर्टल्स के दस्तावेजों की गहनता से जांच की गई थी। अगर हां तो इस बात का ध्यान क्यों नहीं रखा गया कि कतिपय न्यूज पोर्टल प्रदेश से बाहर के हैं जबकि निविदा में यह नियम पहले से है कि बाहरी न्यूज पोर्टल्स का कार्यालय प्रदेश में होना चाहिये। राज्य से बाहर के कुछ न्यूज पोर्टल्स को सूचीबद्व किया गया है, जिनका कार्य क्षेत्र उत्तराखंड नहीं है, और न ही उत्त्तराखण्ड से इनका कोई लेना देना है। इनके द्वारा दिए गये कार्यालयों के पतों पर हमें संदेह है। इसलिए राज्य से बाहर के पत्रकारों की एलआईयू जांच कराई जाए। इसमें इनके स्थानीय पते व आधार कार्ड समेत अन्यत दस्तावेजों का गहनता से अध्ययन किया जाये कि कहीं इनमें से कोई सरकार विरोधी गतिविधियों में संलिप्त तो नहीं है।
इस शर्त का कठोरता से पालन हो कि न्यूज पोर्टल्स चलाने वाले पत्रकार व उनके कार्यालय उत्तराखण्ड मूल के ही हों, क्योंकि अपुष्ट जानकारियों के हिसाब से पता चला है कि साजिश के तहत अन्य राज्यों से न्यूज पोर्टल्स की उत्तराखंड मीडिया में घूसपैठ करवाई जा रही है। इसमें कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनका पत्रकारिता से सीधा कोई वास्ता नहीं है, अपितु समय आने पर इन्हें राजनीतिक पार्टियां अपने निजी स्वार्थों के हिसाब से उत्तराखंड में इस्तेमाल करेंगी। सबसे महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि भविष्य में न्यूज पोर्टल्स सूचीबद्धता की ई टेंडर या टेंडर प्रक्रिया को समाप्त कर दिया जाये। इसकी जगह जल्द से जल्द नीति बनाकर न्यूज चैनल्स व अखबारों की भांति न्यूज पोर्टल्स को भी सूचीबद्ध किया जाये और विभाग द्वारा विज्ञापन की दरें तय की जायें। ऐसा करने से न्यूज पोर्टल्स की भेड़ चाल समाप्त हो सकती है।
इस जून में सभी न्यूज पोर्टल्स को विज्ञापन जारी कर दिए जाएं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल्स सूचीबद्वता की प्रक्रिया के लिए भी नीति निर्धारण पर काम प्रारम्भ कर दिया जाए। नीति में उत्तराखंड में रहकर कार्य कर रहे स्थानीय न्यूज पोर्टल्स को ही विज्ञापन में प्राथमिकता दी जाये।