Breaking News
  • राजधानी के प्रेमनगर क्षेत्र में विवाहित महिलाओं पर परिवार की बर्बरता पर महिला आयोग अध्यक्ष सख्त, एसएसपी को दिए कड़ी कार्रवाई के निर्देश
  • प्रदेश में पोलिंग पार्टियों के लौटने के बाद जारी हुआ नया मतदान प्रतिशत
  • वनाग्नि की रोकथाम के लिए मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को तत्काल समुचित कदम उठाने के दिये निर्देश
  • केदारनाथ धाम में घोड़े-खच्चरों के रात्रि विश्राम पर लगाया प्रतिबंध, नियमों की अनदेखी पर होगी कार्रवाई
  • एम्स के दीक्षांत समारोह में पहुंचीं राष्ट्रपति द्राैपदी मुर्मू, टॉपर छात्र-छात्रों को देंगी मेडल

हर चुनाव में नए सहयोगी संग नजर आती है आरएलडी, सपा के साथ तीसरी बार आरएलडी ने मिलाया हाथ

न्यूज़ आई: पश्चिमी यूपी के जाटलैंड में सियासी आधार माने जाने वाली आरएलडी के सितारे भले ही आज गर्दिश में हों, लेकिन एक दौर में किंगमेकर की भूमिका अदा करती रही है. मुजफ्फरनगर दंगे से बिगड़े जाट-मुस्लिम समीकरण किसान आंदोलन से फिर एक बार साथ आए हैं. यही वजह है कि आरएलडी के साथ सपा ने गठबंधन कर चुनाव में उतरने का फैसला किया. माना जा रहा है कि सीट शेयरिंग में आरएलडी को 32 से 36 सीटें मिल सकती हैं. जयंत-अखिलेश ने एक साथ मिलकर पश्चिमी यूपी में माहौल बनाना भी शुरू कर दिया है. उत्तर प्रदेश की सियासत में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के सामने अपने बाप-दादा की ढहती सियासी विरासत को बचाने की चुनौती है. ऐसे में जयंत चौधरी ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है.सूबे में आरएलडी पहली बार किसी से गठबंधन कर चुनाव में नहीं उतर रही है, बल्कि बीजेपी से लेकर कांग्रेस और बसपा सहित सभी प्रमुख दलों के साथ हाथ मिला चुकी है. आज मेरठ के दबथुवा में एक मंच पर जैसे ही अखिलेश और चौधरी जयंत आए सपा-रालोद के गठबंधन की गांठ और पक्की हो गई।
चौधरी अजित सिंह ने सियासत में अपने पिता चौधरी चरण सिंह की उंगली पकड़कर एंट्री की थी. साल 1980 में अजित सिंह ने सियासी पारी का आगाज किया था, चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद 1987 में वो लोकदल के अध्‍यक्ष बने और 1988 में जनता पार्टी के अध्‍यक्ष घोषित किए गए. 1989 में अजित सिंह यूपी के मुख्यमंत्री बनते-बनते रहे गए. 1999 को छोड़ दें तो अजित सिंह 1989 के बाद बागपत से लगातार 2014 तक सांसद रहे. जनता दल से अलग होकर चौधरी अजित सिंह ने 1996 में आरएलडी का गठन किया.
2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दशकों पुराना चौधरी चरण सिंह के जमाने का जाट-मुस्लिम राजनीतिक गठबंधन तार-तार कर दिया और इसका सीधा नुकसान अजित सिंह और आरएलडी को हुआ. इस वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित और उनके पुत्र जयंत चौधरी दोनों ही हार गए. कांग्रेस महज दो सीटें जीत पाई जबकि आरएलडी अपना खाता ही नहीं खोल सकी. 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा में दोस्ती हो जाने से आरएलडी हाशिए पर पहुंच गई. ये दोस्ती बिखरने का नुकसान दोनों दलों को हुआ. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी बसपा और सपा के साथ हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरी. सपा-बसपा ने आरएलडी को तीन सीटें दी थी, जिनमें एक भी सीट वो नहीं जीत सकी. इतना ही नहीं अजित सिंह और जयंत दोनों हार गई
किसान आंदोलन शुरू हआ तो पश्चिमी यूपी भी उसके जद में रहा. अजित सिंह ने बेटे जयंत को किसानों के पास भेजा और गाजीपुर बार्डर पर राकेश टिकैत रो पड़े तब अजित सिंह ने उन्हें फोन करके न सिर्फ ढाढस बंधाया बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रालोद कार्यकर्ताओं को किसानों के साथ एकजुट होने की अपील की. अजित सिंह ने राकेश टिकैत से कहा कि डटे रहना पीछे मत हटना. अगर पीछे हट गए पूरी किसान बिरादरी खत्म हो जाएगी जो फिर कभी खड़ी नहीं हो सकेगी. अजित सिंह के भरोसे के बाद ही राकेश टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा बने तो आरएलडी को पश्चिमी यूपी में सियासी संजीवनी मिली. जाट-मुस्लिम में नजदीकियां बढ़ीं. पश्चिमी यूपी में आरएलडी के सियासी आधार को देखते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी के साथ गठबंधन किया.