Breaking News
  • प्रधानमंत्री मोदी के ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान को दिया नया आयाम-मुख्यमंत्री का भावुक आह्वान
  • मुख्यमंत्री ने राज्य आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि दी, आंदोलनकारियों को किया सम्मानित
  • उत्तराखण्ड की रजत जयंती के मौके पर ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित हुआ दो दिवसीय समारोह
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गढ़वाली-कुमांऊनी में प्रदेशवासियों को राज्य स्थापना दिवस की बधाई दी
  • केंद्र सरकार से राज्य को पूरा सहयोग का भरोसा दिया, 8260 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास-लोकार्पण

अनुपमा रावत ने लिया पिता हरीश रावत की हार का बदला

देहरादून, न्यूज़ आई । प्रदेश की सबसे हॉट सीट हरिद्वार ग्रामीण से कांग्रेस की अनुपमा रावत की ओपनिंग के सामने प्रदेश के सबसे कद्दावर कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद बोल्ड हो गए। अनुपमा ने अपने पहले ही चुनाव में 2017 में पिता हरीश रावत की हार का बदला लेने के साथ स्वामी यतीश्वरानंद को हैट्रिक लगाने से रोक दिया। आखिरी दो राउंड की गिनती पूरी होने से पहले ही स्वामी यतीश्वरानंद ने समर्थकों के साथ मतगणना स्थल छोड़ दिया। वहीं लालकुआं से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की हार और प्रदेश में कांग्रेस को झटका लगने से अनुुपमा और उनके समर्थक जीत का जश्न भी नहीं मना सके।
हरिद्वार ग्रामीण सीट पर बेहद ही रोचक मुकाबला रहा। भाजपा के स्वामी यतीश्वरानंद धामी कैबिनेट में सबसे ताकतवर मंत्री रहे। वहीं कांग्रेस ने आखिरी समय में अनुपमा रावत को मैदान में उतारा। अनुपमा रावत को चुनावी प्रचार के लिए वक्त भले ही कम मिला, लेकिन हरीश रावत ने पहले ही सीट पर स्वामी की घेराबंदी कर ली थी। हरीश रावत ग्रामीण से 2017 में स्वामी से चुनाव हारे थे। 2017 में स्वामी को 44964 और हरीश रावत को 32686 वोट मिले थे। जबकि बसपा के मुर्करम अंसारी को 18383 वोट मिले थे। स्वामी से हार की टीस हरीश रावत भूल नहीं पाए थे और 2022 में बेटी अनुपमा के लिए माहौल बनाने की तैयारी में जुट गए थे।
हरीश रावत ने 2017 में बसपा से चुनाव लड़कर तीसरे स्थान पर रहे मुर्करम अंसारी और बसपा के कद्दावर इरशाद अली को कांग्रेस में शामिल कराया। इन दोनों नेताओं ने मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण में अहम भूमिका निभाई। ऐन वक्त अनुपमा रावत के मैदान में उतरने से स्थानीय कांग्रेसियों ने पैराशूट प्रत्याशी होने का आरोप लगाया, लेकिन हरीश रावत की कूटनीति के चलते विरोध दब गया। मुस्लिम और दलित वोटरों के ध्रुवीकरण से अनुपमा ने अपने राजनीतिक करियर के पहले चुनाव में मैदान मार लिया। सीट पर सर्वाधिक करीब 40 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। जबकि 15 हजार के करीब पहाड़ी मूल के मतदाता हैं।